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Showing posts with the label Religious Story

श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग - Shree Nageshwar Jyotirling

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गुजरात में द्वारका के पास नागेश्वर शिव के 12 ज्योतिर्लिंग मंदिरों में से एक है। मंदिर में ज्योतिर्लिंग को नागेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। मंदिर में स्थित ज्योतिर्लिंग को सभी प्रकार के जहरों से रक्षा करना माना जाता है। यह माना जाता है कि जो मंदिर में प्रार्थना करता है वह जहरीला मुक्त होता है। इस पवित्र ज्योतिर्लिंग के दर्शन की शास्त्रों में बड़ी महिमा बताई गई है। कहा गया है कि जो श्रद्धापूर्वक इसकी उत्पत्ति और माहात्म्य की कथा सुनेगा वह सारे पापों से छुटकारा पाकर समस्त सुखों का भोग करता हुआ अंत में भगवान्‌ शिव के परम पवित्र दिव्य धाम को प्राप्त होगा। भगवान्‌ शिव का यह प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग गुजरात प्रांत में द्वारकापुरी से लगभग 17 मील की दूरी पर स्थित है। हर साल हजारों तीर्थयात्रियों द्वारा मंदिर का दौरा किया जाता है। यह मंदिर गुजरात में द्वारका और द्वारका द्वीप सूरत के तट पर स्थित है। किंवदंतियों के अनुसार, सुप्रिय नामक एक भक्त को एक नाव में दानूक नामक दानव ने हमला किया था। श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के बारे में - दिवंगत गुलशन कुमार द्वारा वर्तमान मंदिर का पुन...

नमक का स्वाद - Taste of Salt (Shri Krishna and Satyabhama)

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एक बार सत्यभामा ने श्रीकृष्ण से पूछा - मैं आप को कैसी लगती हूँ ? श्रीकृष्ण ने कहा तुम मुझे नमक जैसी लगती हो। सत्यभामा इस तुलना को सुन कर क्रुद्ध हो गयी, तुलना भी की तो किस से, आपको इस संपूर्ण विश्व में मेरी तुलना करने के लिए और कोई पदार्थ नहीं मिला। श्रीकृष्ण ने उस वक़्त तो किसी तरह सत्यभामा को मना लिया और उनका गुस्सा शांत कर दिया। कुछ दिन पश्चात श्रीकृष्ण ने अपने महल में एक भोज का आयोजन किया। छप्पन भोग की व्यवस्था हुई। श्रीकृष्ण ने सर्वप्रथम आठों पटरानियों को, जिनमें पाकशास्त्र में निपुण सत्यभामा भी थी, से भोजन प्रारम्भ करने का आग्रह किया। सत्यभामा ने पहला कौर मुँह में डाला मगर यह क्या.. सब्जी में नमक ही नहीं था। सत्यभामा ने उस कौर को मुँह से निकाल दिया। फिर दूसरा कौर मावा-मिश्री का मुँह में डाला और फिर उसे चबाते-चबाते बुरा सा मुँह बनाया और फिर पानी की सहायता से किसी तरह मुँह से उतारा। अब तीसरा कौर फिर कचौरी का मुँह में डाला और फिर.. आक्..थू ! तब तक सत्यभामा का पारा सातवें आसमान पर पहुँच चुका था। जोर से चीखीं.. किसने बनाई है यह रसोइ ? सत्यभामा की आवाज सुन कर श्रीकृष्ण दौड़ते ह...

धर्म और मुक्ति - Religion and Liberation

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शिप्रा नदी के पास बसे एक गांव से एक पंडित रोज नदी को पार कर उज्जैन शहर मे रहने वाले एक धनी सेठ को कथा सुनाने जाता था। पंडित रोज सेठ को कथा सुनाता और बदले में सेठ उसे धन दान देता। ऐसे ही एक दिन जब वह पण्डित सेठ को कथा सुनाने के लिये नदी को पार करके जा रहा था तो उसे एक आवाज सुनाई दी - "कभी हमें भी ज्ञान दे दिया करो।" पण्डित ने इधर-उधर देखा मगर उसे वहां कोई दिखाई नही दिया। उसे फिर अपने पास से ही एक आवाज सुनाई दी - "पण्डित जी मैं यहाँ हूँ।" पण्डित ने देखा कि वह एक घड़ियाल था। पण्डित जी हैरान भी थे घड़ियाल को इंसान की आवाज में बोलते सुनकर और घबराये भी थे। घड़ियाल ने कहा - "पण्डित जी आप डरिये नही आप मुझे कथा सुनाकर ज्ञान प्रदान करे और यह सब मैं मुफ्त में भी नही मांग रहा हूँ। आपकी कथा के बदले में रोज आपको एक अशर्फी मैं दिया करूंगा।" पण्डित को बात जची। पण्डित को तो धन की चाहत थी फिर चाहे वो उसे नदी के उस पार सेठ को कथा सुनाने से मिले या नदी के इस किनारे घड़ियाल को कथा सुनाकर मिले। रोज वह पण्डित घड़ियाल को कथा सुनाता और रोज घड़ियाल पण्डित को एक अशर्फी बदल...

वृंदावन की एक गोपी - A Gopi of Vrindavan (प्रभु नाम में पूर्ण विश्वास एंव श्रद्धा)

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वृंदावन की एक गोपी रोज दूध दही बेचने मथुरा जाती थी। एक दिन ब्रज में एक संत आये, गोपी भी कथा सुनने गई। संत कथा में कह रहे थे- "भगवान के नाम की बड़ी महिमा है, उनके नाम से बड़े बड़े संकट भी टल जाते है। प्रभु का नाम तो भव सागर से तारने वाला है। यदि भव सागर से पार होना है तो भगवान का नाम कभी मत छोडना।" कथा समाप्त हुई गोपी अगले दिन फिर दूध दही बेचने चली। बीच में यमुना जी थी। गोपी को संत की बात याद आई, संत ने कहा था भगवान का नाम तो भवसागर से पार लगाने वाला है। गोपी ने सोचा, जिस भगवान का नाम भव सागर से पार लगा सकता है तो क्या उन्ही भगवान का नाम मुझे इस साधारण सी नदी से पार नहीं लगा सकता ? ऐसा सोचकर गोपी ने मन में भगवान के नाम का आश्रय लिया और भोली भाली गोपी यमुना जी की ओर आगे बढ़ गई। अब जैसे ही यमुना जी में पैर रखा तो लगा मानो जमीन पर चल रही है और ऐसे ही सारी नदी पार कर गई। पार पहुँचकर बड़ी प्रसन्न हुई और मन में सोचने लगी कि संत ने तो ये बड़ा अच्छा तरीका बताया पार जाने का। रोज-रोज नाविक को भी पैसे नहीं देने पड़ेगे। एक दिन गोपी ने सोचा कि संत ने मेरा इतना भला किया म...

चटोरे मदनमोहन - Chatore Madan Mohan (A Religious Story)

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सनातन गोस्वामी जी मथुरा में एक चौबे के घर मधुकरी के लिए जाया करते थे। उस चौबे की स्त्री परमभक्त और मदन मोहन जी की उपासिका थी, उसके घर बाल भाव से मदन मोहन भगवान विराजते थे। असल में सनातन जी उन्ही मदन मोहन जी के दर्शन हेतु प्रतिदिन मधुकरी के बहाने जाया करते थे। मदन मोहन जी तो ग्वार ग्वाले ही ठहरे ये आचार विचार क्या जाने, उस चौबे के लड़के के साथ ही एक पात्र में भोजन करते थे। ये देख सनातन जी को बड़ा आश्चर्य हुआ, ये मदनमोहन तो बड़े वचित्र है। एक दिन इन्होने आग्रह करके मदन मोहन जी का उच्छिष्ठ (झूठा) अन्न मधुकरी में माँगा। चौबे की स्त्री ने भी स्वीकार करके दे दिया, बस फिर क्या था। इन्हे उस माखन चोर की लपलपाती जीभ से लगे हुए अन्न का चश्का लग गया, ये नित्य उसी अन्न को लेने जाने लगे। एक दिन मदन मोहन ने इन्हे स्वप्न में दर्शन देकर कहा, बाबा तुम रोज इतनी दूर से आते हो, और इस मथुरा शहर में भी हमे ऊब सी मालूम होवे है। तुम उस चौबे से हमको मांग के ले आओ हमको भी तुम्हारे साथ जंगल में रहनो है।  ठीक उसी रात को चौबे को भी यही स्वप्न हुआ की हमको आप सनातन बाबा को दान कर दो...

श्री माधवेन्द्र पुरीपाद जी के जीवन की एक सत्य घटना - A Real Incident of Shri Madhvendra Puripad Ji

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एक बार श्री माधवेन्द्र पुरीपाद जी अपने श्री गोवर्धनधारी गोपाल के लिए चन्दन लेने पूर्व देश की ओर गए। चलते - चलते वह ओड़िसा के रेमुणा नामक स्थान पर पहुंचे। वहां पर श्री गोपीनाथ जी के दर्शन कर वह बहुत प्रसन्न हुए। कुछ ही समय में ''अमृतकेलि'' नामक खीर का भोग श्री गोपीनाथ जी को लगाया गया। तब उनके मन में विचार आया कि बिना मांगे ही इस खीर का प्रसाद मिल जाता तो मैं उसका आस्वादन करके, ठीक उसी प्रकार का भोग अपने गोपाल जी को लगाता किन्तु साथ ही साथ अपने आपको धिक्कार दिया कि मेरी खीर खाने की इच्छा हुई। ठाकुर जी की आरती दर्शन करके और उन्हें प्रणाम करके वह मंदिर से चले गये व एक निर्जन स्थान पर बैठ कर हरिनाम का जाप करने लगे। इधर मंदिर के पुजारी ठाकुर गोपीनाथ जी की सेवा कार्य समाप्त कर सो गए। उसे स्वप्न में ठाकुर जी ने दर्शन दिये व कहा- ''पुजारी उठो ! मंदिर के दरवाज़े खोलो। मैंने एक संन्यासी के लिये खीर रखी हुई है जो कि मेरे आंचल के कपड़े से ढकी हुई है। मेरी माया के कारण तुम उसे नहीं जान पाये। माधवेन्द्र पुरी नाम के संन्यासी कुछ ही दूर एक निर्जन स्थान पर...

कृष्ण और सुदामा का अटूट प्रेम - The Friend Love of Krishna And Sudama

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कृष्ण और सुदामा का प्रेम बहुत गहरा था। प्रेम भी इतना कि कृष्ण, सुदामा को रात दिन अपने साथ ही रखते थे। कोई भी काम होता, दोनों साथ-साथ ही करते। एक दिन दोनों वनसंचार के लिए गए और रास्ता भटक गए। भूखे-प्यासे एक पेड़ के नीचे पहुंचे। पेड़ पर एक ही फल लगा था। कृष्ण ने घोड़े पर चढ़कर फल को अपने हाथ से तोड़ा। कृष्ण ने फल के छह टुकड़े किए और अपनी आदत के मुताबिक पहला टुकड़ा सुदामा को दिया। सुदामा ने टुकड़ा खाया और बोला, "बहुत स्वादिष्ट! ऎसा फल कभी नहीं खाया। एक टुकड़ा और दे दो। दूसरा टुकड़ा भी सुदामा को मिल गया। सुदामा ने एक टुकड़ा और कृष्ण से मांग लिया। इसी तरह सुदामा ने पांच टुकड़े मांग कर खा लिए। जब सुदामा ने आखिरी टुकड़ा मांगा, तो कृष्ण ने कहा, "यह सीमा से बाहर है, मित्र। आखिर मैं भी तो भूखा हूं। मेरा तुम पर प्रेम है, पर तुम मुझसे प्रेम नहीं करते।" और कृष्ण ने फल का टुकड़ा मुंह में रख लिया। मुंह में रखते ही कृष्ण ने उसे थूक दिया, क्योंकि वह कड़वा था। कृष्ण बोले, "तुम पागल तो नहीं, इतना कड़वा फल कैसे खा गए?"  उस सुदामा का उत्तर था- "जिन हाथों से बहुत म...

सुदामा जी को गरीबी क्यों मिली? - Why Did Sudama Get Poverty?

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अगर अध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखा जाये तो सुदामा जी बहुत धनवान थे। जितना धन उनके पास था, उतना धन किसी के पास नहीं था, पर भौतिक दृष्टि से वह बहुत निर्धन थे। आखिर क्यों, सुदामा जी को गरीबी मिली ? एक ब्राह्मणी थी जो बहुत गरीब निर्धन थी। भिक्षा माँग कर जीवन यापन करती थी। एक समय ऐसा आया कि पाँच दिन तक उसे भिक्षा नहीं मिली तो वह प्रतिदिन पानी पीकर भगवान का नाम लेकर सो जाती थी। छठवें दिन उसे भिक्षा में दो मुट्ठी चना मिले। कुटिया तक पहुँचते-पहुँचते रात हो गयी। ब्राह्मणी ने सोचा, अब ये चने रात में नही खाऊँगी। प्रात:काल वासुदेव को भोग लगाऊंगी तब खाऊँगी। यह सोचकर ब्राह्मणी ने चनों को कपड़े में बाँधकर रख दिया और वासुदेव का नाम जपते-जपते सो गयी। समय का खेल देखिए कहते हैं "पुरुष बली नहीं होत है समय होत बलवान"। ब्राह्मणी के सोने के बाद कुछ चोर चोरी करने के लिए उसकी कुटिया में आ गये। इधर-उधर ढूँढने पर चोरों को वह चनों की बँधी पोटली मिल गयी चोरों ने समझा इसमें सोने के सिक्के हैं। इतने में ब्राह्मणी जाग गयी और शोर मचाने लगी। गाँव के सारे लोग चोरों को पकड़ने के लिए दौड़े। पकड़े जाने ...

भगवान श्री जगन्नाथ जी को भेंट - Donation to Lord Shri Jagannath Ji

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बहुत पुरानी बात है, एक सेठ के पास एक व्यक्ति काम करता था। सेठ उस व्यक्ति पर बहुत विश्वास करता था जो भी जरुरी काम हो वह सेठ हमेशा उसी व्यक्ति से कहता था। वो व्यक्ति भगवान का बहुत बड़ा भक्त था। वह सदा भगवान के चिंतन भजन कीर्तन स्मरण सत्संग आदि का लाभ लेता रहता था। एक दिन उस भक्त ने सेठ से श्री जगन्नाथ धाम यात्रा करने के लिए कुछ दिन की छुट्टी मांगी सेठ ने उसे छुट्टी देते हुए कहा- "भाई मैं तो हूँ संसारी आदमी, हमेशा व्यापार के काम में व्यस्त रहता हूँ जिसके कारण कभी तीर्थ गमन का लाभ नहीं ले पाता। तुम जा ही रहे हो तो यह लो 100 रुपए मेरी ओर से श्री जगन्नाथ प्रभु के चरणों में समर्पित कर देना।" भक्त सेठ से सौ रुपए लेकर श्री जगन्नाथ धाम यात्रा पर निकल गया। कई दिन की पैदल यात्रा करने के बाद वह श्री जगन्नाथ पुरी पहुंचा। मंदिर की ओर प्रस्थान करते समय उसने रास्ते में देखा कि बहुत सारे संत, भक्त जन, वैष्णव जन, हरि नाम संकीर्तन बड़ी मस्ती में कर रहे हैं। सभी की आंखों से अश्रु धारा बह रही है। जोर-जोर से हरि बोल, हरि बोल गूंज रहा है। संकीर्तन में बहुत आनंद आ रहा था। भक्त भी वहीं रुक कर ह...

आखिर क्यों हुआ भगवान श्री कृष्ण और शिव जी का भयंकर युद्ध - Shri Krishna and Shiva Ji Frightful War

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दानवीर दैत्यराज बलि के सौ प्रतापी पुत्र थे। उनमें सबसे बड़ा वाणासुर था। वाणासुर ने भगवान शंकर की बड़ी कठिन तपस्या की। शंकर जी ने उसके तप से प्रसन्न होकर उसे सहस्त्र बाहु तथा अपार बल दे दिया। उसके सहस्त्र बाहु और अपार बल के भय से कोई भी उससे युद्ध नहीं करता था। इसी कारण से वाणासुर अति अहंकारी हो गया।  बहुत काल व्यतीत हो जाने के पश्चात् भी जब उससे किसी ने युद्ध नहीं किया तो वह एक दिन शंकर भगवान के पास आकर बोला, "हे चराचर जगत के ईश्वर! मुझे युद्ध करने की प्रबल इच्छा हो रही है किन्तु कोई भी मुझसे युद्ध नहीं करता। अतः कृपा करके आप ही मुझसे युद्ध करिये।" उसकी अहंकारपूर्ण बात को सुन कर भगवान शंकर को क्रोध आया किन्तु वाणासुर उनका परम भक्त था इसलिये अपने क्रोध का शमन कर उन्होंने कहा, "रे मूर्ख! तुझसे युद्ध करके तेरे अहंकार को चूर-चूर करने वाला उत्पन्न हो चुका है। जब तेरे महल की ध्वजा गिर जावे तभी समझ लेना कि तेरा शत्रु आ चुका है।" वाणासुर की उषा नाम की एक कन्या थी। एक बार उषा ने स्वप्न में श्री कृष्ण के पौत्र तथा प्रद्युम्न के पुत्र अनिरुद्ध को देखा और उस पर मोह...

भगवान विष्णु और माँ लक्ष्मी - Lord Vishnu And Maa Laxmi (प्रभु की कृपा)

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एक बार भगवान विष्णु जी शेषनाग पर बैठे बैठे बोर हो गये तो उन्होने धरती पर घुमने का विचार मन में किया। वैसे भी कई साल बीत गये थे धरती पर आये और वह अपनी यात्रा की तैयारी में लग गये। स्वामी को तैयार होता देख कर लक्ष्मी मां ने पुछा- "आज सुबह सुबह कहा जाने की तैयारी हो रही है?" विष्णु जी ने कहा- "हे लक्ष्मी, मैं धरती लोक पर घुमने जा रहा हूँ।"  कुछ सोच कर लक्ष्मी मां ने कहा- "हे देव, क्या मैं भी आप के साथ चल सकती हूँ?" भगवान विष्णु ने दो पल सोचा फ़िर कहा- "एक शर्त पर, तुम मेरे साथ चल सकती हो। तुम धरती पर पहुंच कर उत्तर दिशा की ओर बिलकुल मत देखना।" इस के साथ ही माता लक्ष्मी ने हाँ कह कर अपनी बात मनवाली।  सुबह सुबह मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु धरती पर पहुच गये। अभी सुर्य देवता निकल रहे थे, रात बरसात हो कर हटी थी। चारो ओर हरियाली ही हरियाली थी। उस समय चारो ओर बहुत शान्ति थी और धरती बहुत ही सुन्दर दिख रही थी। मां लक्ष्मी मन्त्र मुग्ध हो कर धरती को देख रही थी और भुल गई कि पति को क्या वचन दे कर आई है? चारों ओर देखती हुयी कब उत्तर दिशा की ...

भगवान नारायण और शिव शंकर - Lord Vishnu And Shiv Shankar (दो शरीर एक आत्मा)

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एक बार भगवान नारायण वैकुण्ठ लोक में सोये हुए थे। उन्होंने स्वप्न में देखा कि करोड़ों चन्द्रमाओं की कांतिवाले, त्रिशूल-डमरू-धारी, स्वर्णाभरण-भूषित, सुरेन्द्र-वन्दित, सिद्धिसेवित त्रिलोचन भगवान शिव प्रेम और आनन्दातिरेक से उन्मत्त होकर उनके सामने नृत्य कर रहे हैं। उन्हें देखकर भगवान विष्णु हर्ष से गद्गद् हो उठे और अचानक उठकर बैठ गये, कुछ देर तक ध्यानस्थ बैठे रहे।  उन्हें इस प्रकार बैठे देखकर श्रीलक्ष्मी जी पूछने लगीं, "भगवन! आपके इस प्रकार अचानक निद्रा से उठकर बैठने का क्या कारण है?" भगवान ने कुछ देर तक उनके इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं दिया और आनंद में मग्न हुए चुपचाप बैठे रहे, कुछ देर बाद हर्षित होते हुए बोले- "देवी, मैंने अभी स्वप्न में भगवान श्री महेश्वर का दर्शन किया है। उनकी छवि ऐसी अपूर्व आनंदमय एवं मनोहर थी कि देखते ही बनती थी। मालूम होता है, शंकर ने मुझे स्मरण किया है। अहोभाग्य, चलो, कैलाश में चलकर हम लोग महादेव के दर्शन करें।" ऐसा विचार कर दोनों कैलाश की ओर चल दिये। भगवान शिव के दर्शन के लिए कैलाश मार्ग पर आधी दूर गये होंगे कि देखते है...

विष्णु भक्त बालक महिदास की कहानी - Story of Lord Vishnu Devotee Child Mahidas (भक्तों के भगवान)

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भगवान अपने भक्त का हमेशा ध्यान रखते है। अगर भक्त सभी मुश्किलों को झेलते हुए अपने ईश्वर पर विश्वास करता है तो भगवान भी ऐसे भक्त के लिए कुछ भी कर देते हैं। हमारे इतिहास में वैसे इस तरह की कई कहानियां हैं लेकिन संत महिदास जी की कथा को बहुत ही कम लोग जानते हैं। एक बच्चा जो विष्णु भगवान को बहुत मानता था और इनकी आराधना करता था। उसके पिता उसे निकम्मा समझते थे और समाज भी इज्जत नहीं देता था। एक बार बालक परेशान हुआ तो कहते हैं कि भगवान विष्णु धरती फाड़कर उसमें से प्रकट हुए थे। तो आइये आज इसी बालक महिदास की कहानी पढ़ते हैं। पेश है आज का विशेष- भक्तों के भगवान। हारीत ऋषि के वंश में माणडूकि नाम के विधान थे। कहते हैं कि इनकी कई पत्नियाँ थीं। इसीलिए शायद शास्त्रों में यह ऋषि काफी विवादों से घिरे हुए रहे हैं। अनेक पत्नियों में से एक पत्नी का नाम इतरा था। इन्हीं से जन्म लेने वाले पुत्र का नाम महिदास था। लेकिन यहाँ पर इस ऋषि के नाम पर कुछ विवाद हैं। पहला विवाद यह है कि हारीत ऋषि खुद तो हारित थे तो इनका बच्चा कैसे ‘मही’-‘दास’ बोला जाता है। क्योकि दास एक छोटी जाति का सूचक है। तो क...

भगवान विष्णु भक्त नारद मुनि - Lord Vishnu Devotee Narad Muni

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एक बार नारद मुनि पृथ्वी का भ्रमण कर रहे थे। तब उन्हें उनके एक खास भक्त जो नगर का सेठ था ने याद किया। अच्छी सत्कार के बाद सेठ ने नारद जी से प्रार्थना की- "आप ऐसा कोई आर्शीवाद दें कि कम से कम एक बच्चा हो जाए।" नारद ने कहा कि तुम लोग चिंता न करो, मैं अभी प्रभु नारायण से मिलने जा रहा हूं। उन तक तुम्हारी प्रार्थना पहुंचा दूंगा और वे अवश्य कुछ करेंगे। नारद विष्णु धाम गए और सेठ की व्यथा बताई। भगवन्‌ बोले कि उसके भाग्य में संतान सुख नहीं है इसलिए कुछ नहीं हो सकता।  उसके कुछ समय बाद नारद ने एक दीये में तेल ऊपर तक भरा और अपनी हथेली पर सजाया और पूरे विश्व की यात्रा की। अपनी निर्विघ्न यात्रा का समापन उन्होंने विष्णु धाम आकर ही संपन्न किया। इस पूरी प्रक्रिया में नारद को बड़ा घमंड हो गया कि उनसे ज्यादा ध्यानी और विष्णु भक्त कोई ओर नहीं। अपने इसी घमंड में नारद पुनः पृथ्वी लोक पर आए और उसी सेठ के घर पहुंचे। इस दौरान सेठ के घर में छोटे-छोटे चार बच्चे घूम रहे थे।  नारद ने जानना चाहा कि ये संतान किसकी हैं तो सेठ बोले- "आपकी हैं प्रभु।" नारद इस बात से खुश न...

शिव भक्त और भिखारी - The Shiva Divotee And Beggar

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एक बार एक धनिक शिव भक्त शिवालय जाता है। पैरों में महँगे और नये जूते होने पर सोचता है कि क्या करूँ? जूते यदि बाहर उतार कर जाता हूँ तो कोई उठा न ले जाये और अंदर पूजा में भी मन नहीं लगेगा। सारा ध्यान जूतों पर ही रहेगा। तभी उसे बाहर एक भिखारी बैठा दिखाई देता है। वह धनिक भिखारी से कहता है- "भाई जब तक मैं पूजा करके वापस न आ जाऊँ, तब तक मेरे जूतों का ध्यान रखोगे?" भिखारी हाँ कर देता है। अंदर पूजा करते समय धनिक सोचता है कि "हे प्रभु आपने यह कैसा असंतुलित संसार बनाया है? किसी को इतना धन दिया है कि वह पैरों तक में महँगे जूते पहनता है तो किसी को अपना पेट भरने के लिये भीख तक माँगनी पड़ती है! कितना अच्छा हो कि सभी एक समान हो जायें!" वह धनिक निश्चय करता है कि वह बाहर आकर भिखारी को 100 का एक नोट देगा। बाहर आकर वह धनिक देखता है कि वहाँ न तो वह भिखारी है और न ही उसके जूते। धनिक ठगा सा रह जाता है। वह कुछ देर भिखारी का इंतजार करता है कि शायद भिखारी किसी काम से कहीं चला गया हो। पर वह नहीं आया। धनिक दुखी मन से नंगे पैर घर के लिये चल देता है। रास्ते में फुटपाथ पर देखता है क...

सुख की माया में खोए मन को भगवान भी नहीं बचा सकते - God Can't Save The Lost Mind in Happiness

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एक इंसान घने जंगल में भागा जा रहा था। शाम हो गई थी इसलिए अंधेरे में कुआं दिखाई नहीं दिया और वह उसमें गिर गया। गिरते-गिरते कुएं पर झुके पेड़ की एक डाल उसके हाथ में आ गई। जब उसने नीचे झांका, तो देखा कि कुएं में चार अजगर मुंह खोले उसे देख रहे हैं। जिस डाल को वह पकड़े हुए था, उसे दो चूहे कुतर रहे थे। इतने में एक हाथी आया और पेड़ को जोर-जोर से हिलाने लगा। वह घबरा गया और सोचने लगा कि हे भगवान अब क्या होगा ? उसी पेड़ पर एक मधुमक्खियों का छत्ता लगा हुआ था। हाथी के पेड़ को हिलाने से मधुमक्खियां उडऩे लगीं और शहद की बूंदें टपकने लगीं। एक बूंद उसके होठों पर आ गिरी। उसने प्यास से सूख रही जीभ को होठों पर फेरा, तो उसे शहद की उस बूंद में गजब की मिठास का अनुभव हुआ। कुछ पल बाद फिर शहद की एक और बूंद उसके मुंह में टपकी। अब वह इतना मगन हो गया कि अपनी मुश्किलों को भूल गया। तभी उस जंगल से भगवान अपने वाहन से गुजरे। भगवान ने उसके पास जाकर कहा - मैं तुम्हें बचाना चाहता हूं। मेरा हाथ पकड़ लो। उस इंसान ने कहा कि एक बूंद शहद और चाट लूं, फिर चलता  हूँ। एक बूंद, फि...

नरेंद्र मोदी जी के बचपन का किस्सा 'जब गाय ने छोड़ दिया शरीर...' - An Anecdote of The Childhood of Narendra Modi

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साबरमती आश्रम(अहमदाबाद) में गौरक्षा के नाम पर हो रही हिंसा को लेकर नरेंद्र मोदी जी अपनी बात रखते हुए भावुक हो गए। उन्होंने अपने बचपन का एक किस्सा सुनाकर गौ-रक्षकों को अहिंसा का संदेश दिया। मोदी जी ने कहा- ''देशवासियों से आग्रह करता हूं कि हिंसा समस्याओं का समाधान नहीं है। महात्मा गांधी-विनोबा भावे जीवनभर गौरक्षा के लिए लड़ते रहे। लेकिन क्या हमें किसी इंसान को मारने का हक मिल जाता है? क्या ये गौ-भक्ति है? क्या ये गौ-रक्षा है? ये गांधीजी, विनोबाजी का रास्ता नहीं हो सकता, जिन्होंने गौ-रक्षा के लिए अपना सारा जीवन समर्पित कर दिया।''     मोदी जी ने सुनाई गाय की कहानी... मोदी जी ने कहा- ''मेरे जीवन की एक घटना है, जिसे मैं लिखना चाहता था। मैं बालक था। गांव में मेरा घर एक छोटी-सी गली में है। हमारे घर से सामने एक परिवार था, जो मजदूरी करता था। उनकी कोई संतान नहीं थी। परिवार में इसे लेकर तनाव रहता था। बहुत देर में उनके यहां संतान हुई।'' ''मोहल्ले में बहुत संकरी गली थी। एक गाय रोज घरों के सामने आती थी। एक बार अचानक कोई हलचल हो गई। गाय ...

नरसी मेहता जी के जीवन की एक सत्य घटना - A Real Incident of the Life of Narsi Mehta Ji

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एक बार नरसी जी का बड़ा भाई वंशीधर नरसी जी के घर आया। पिता जी का वार्षिक श्राद्ध करना था। वंशीधर ने नरसी जी से कहा- "कल पिता जी का वार्षिक श्राद्ध करना है। कहीं अड्डेबाजी मत करना। बहु को लेकर मेरे यहाँ आ जाना। काम-काज में हाथ बटाओगे तो तुम्हारी भाभी को आराम मिलेगा।" नरसी जी ने कहा- "पूजा पाठ करके ही आ सकूँगा।" इतना सुनना था कि वंशीधर उखड गए और बोले- "जिन्दगी भर यही सब करते रहना। जिसकी गृहस्थी भिक्षा से चलती है, उसकी सहायता की मुझे जरूरत नहीं है। तुम पिताजी का श्राद्ध अपने घर पर अपने हिसाब से कर लेना।" नरसी जी ने कहा- "नाराज क्यों होते हो भैया? मेरे पास जो कुछ भी है, मैं उसी से श्राद्ध कर लूँगा।" नगर-मंडली को मालूम हो गया कि दोनों भाईयों के बीच श्राद्ध को लेकर झगडा हो गया है। नरसी अलग से श्राद्ध करेगा, ये सुनकर नगर मंडली ने बदला लेने की सोची। पुरोहित प्रसन्न राय ने सात सौ ब्राह्मणों को नरसी के यहाँ आयोजित श्राद्ध में आने के लिए आमंत्रित कर दिया। प्रसन्न राय ये जानते थे कि नरसी का परिवार मांगकर भोजन करता है। वह क्या सात सौ ब्राह्मणों को ...

राम से बड़ा राम का नाम क्यों ? - Why Ram Name is More Powerful Than God Ram

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राम दरबार में एक बार हनुमान जी महाराज श्री राम की सेवा में इतने तन्मय हो गए कि, गुरू वशिष्ठ के आने का उनको ध्यान ही नहीं रहा। सबने उठ कर उनका अभिवादन किया पर, हनुमान जी नहीं कर पाए। गुरू वशिष्ठ जी ने इस अपमान से क्रोधित हो कर राम से हनुमान के लिए मृत्युदंड माँगा, वो भी राम के अमोघ बाण से जो अचूक शस्त्र था। महाराज श्री राम ने कहा स्वीकार है। दरबार में राम ने घोषणा की कि कल संध्याकाल में सरयु नदी के तट पर हनुमान जी को मैं स्वयं अपने अमोघ बाण से मृत्यु दण्ड दूँगा। हनुमानजी के घर पहुँचने पर माता अंजनी ने हनुमान से उदासी का कारण पूछा तो हनुमान ने अनजाने में हुई अपनी गलती और अन्य सारा घटनाक्रम बताया। माता अंजनी को मालूम था कि समस्त ब्रम्हाण्ड में हनुमान को कोई मार नहीं सकता और राम के अमोघ बाण से भी कोई बच भी नहीं सकता। माता अंजनी ने कहा- "मैंने भगवान शंकर से, 'राम नाम' मंत्र प्राप्त किया था और तुम्हें यह नाम घुटी में पिलाया है। उस 'राम नाम' मंत्र के होते कोई तुम्हारा बाल भी बांका नहीं कर सकता। चाहे वे स्वयं राम ही क्यों ना हों। 'राम नाम' की शक्ति के ...

श्री राधा रानी के एक बार नाम लेने की कीमत - The Value of taking Shri Radha Rani Name Once

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एक बार एक व्यक्ति था। वह एक संत जी के पास गया। और कहता है कि संत जी, मेरा एक बेटा है। वो न तो पूजा पाठ करता है और न ही भगवान का नाम लेता है। आप कुछ ऐसा कीजिये कि उसका मन भगवान में लग जाये। संत जी कहते है- "ठीक है बेटा, एक दिन तू उसे मेरे पास लेकर आ जा।" अगले दिन वो व्यक्ति अपने बेटे को लेकर संत जी के पास गया। अब संत जी उसके बेटे से कहते है- "बेटा, बोल राधे राधे..." बेटा कहता है- मैं क्यू कहूँ? संत जी कहते है- "बेटा बोल राधे राधे..." वो इसी तरह से मना करता रहा और अंत तक उसने यही कहा कि- "मैं क्यू कहूँ राधे राधे..." संत जी ने कहा- जब तुम मर जाओगे और यमराज के पास जाओगे तब यमराज तुमसे पूछगे कि कभी भगवान का नाम लिया। कोई अच्छा काम किया। तब तुम कह देना की मैंने जीवन में एक बार 'श्री राधा रानी' के नाम को बोला है। बस एक बार। इतना बताकर वह चले गए। समय व्यतीत हुआ और एक दिन वो मर गया। यमराज के पास पहुंचा। यमराज ने पूछा- कभी कोई अच्छा काम किया है। उसने कहा- हाँ महाराज, मैंने जीवन में एक बार 'श्री राधा रानी' के नाम को बोल...