श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग - Shree Nageshwar Jyotirling

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गुजरात में द्वारका के पास नागेश्वर शिव के 12 ज्योतिर्लिंग मंदिरों में से एक है। मंदिर में ज्योतिर्लिंग को नागेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। मंदिर में स्थित ज्योतिर्लिंग को सभी प्रकार के जहरों से रक्षा करना माना जाता है। यह माना जाता है कि जो मंदिर में प्रार्थना करता है वह जहरीला मुक्त होता है। इस पवित्र ज्योतिर्लिंग के दर्शन की शास्त्रों में बड़ी महिमा बताई गई है। कहा गया है कि जो श्रद्धापूर्वक इसकी उत्पत्ति और माहात्म्य की कथा सुनेगा वह सारे पापों से छुटकारा पाकर समस्त सुखों का भोग करता हुआ अंत में भगवान्‌ शिव के परम पवित्र दिव्य धाम को प्राप्त होगा।

भगवान्‌ शिव का यह प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग गुजरात प्रांत में द्वारकापुरी से लगभग 17 मील की दूरी पर स्थित है। हर साल हजारों तीर्थयात्रियों द्वारा मंदिर का दौरा किया जाता है। यह मंदिर गुजरात में द्वारका और द्वारका द्वीप सूरत के तट पर स्थित है। किंवदंतियों के अनुसार, सुप्रिय नामक एक भक्त को एक नाव में दानूक नामक दानव ने हमला किया था।

श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के बारे में -

दिवंगत गुलशन कुमार द्वारा वर्तमान मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया था। उन्होंने 1 996 में काम शुरू किया और उनके परिवार ने उनकी हत्या के बाद काम पूरा किया। पूरी परियोजना लागत 1.25 करोड़ रुपये है। गुलशन कुमार चैरिटेबल ट्रस्ट ने परियोजना के पूरे खर्च को जन्म लिया। नागेश्वर मंदिर 2 किमी की दूरी से दिखाई दे रहा है। ध्यान में भगवान शिव की एक विशाल, आकर्षक मूर्ति मंदिर के बाहर भक्तों की प्रशंसा करता है। यह 125 फीट ऊंचे और 25 फीट की व्यापक प्रतिमा है। मुख्य प्रवेश द्वार सरल लेकिन सुंदर है सबसे पहले एक हॉल या सभा मंडप है, जहां पूजा सामग्री काउंटर स्थित हैं। ज्योतिर्लिंग एक तहखाने प्रकार के पवित्र स्थान में है। मुख्य ज्योतिर्लिंग सब सभाओं के तल के नीचे स्थित है। ज्योतिर्लिंग मामूली बड़ी है और शुलुनका चांदी के साथ चढ़ाया जाता है। नाग (सांप) का रजत प्रतिकृति भी रखा गया है। ज्योतिर्लिंग के पीछे देवी पार्वती की एक मूर्ति है नागेश्वर ज्योतिर्लिंग में गर्भगृह में केवल पुरुष भक्त जा सकते हैं और पूजा कर सकते हैं। उन्हें एक धोती पहनना होगा।कोई भी पुरुष के इस कारण को नहीं जानता है।

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श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के संबंध में पुराणों यह कथा वर्णित है-

सुप्रिय नामक एक बड़ा धर्मात्मा और सदाचारी वैश्य था। वह भगवान्‌ शिव का अनन्य भक्त था। वह निरंतर उनकी आराधना, पूजन और ध्यान में तल्लीन रहता था। अपने सारे कार्य वह भगवान्‌ शिव को अर्पित करके करता था। मन, वचन, कर्म से वह पूर्णतः शिवार्चन में ही तल्लीन रहता था। उसकी इस शिव भक्ति से दारुक नामक एक राक्षस बहुत क्रुद्व रहता था।

उसे भगवान्‌ शिव की यह पूजा किसी प्रकार भी अच्छी नहीं लगती थी। वह निरंतर इस बात का प्रयत्न किया करता था कि उस सुप्रिय की पूजा-अर्चना में विघ्न पहुँचे। एक बार सुप्रिय नौका पर सवार होकर कहीं जा रहा था। उस दुष्ट राक्षस दारुक ने यह उपयुक्त अवसर देखकर नौका पर आक्रमण कर दिया। उसने नौका में सवार सभी यात्रियों को पकड़कर अपनी राजधानी में ले जाकर कैद कर लिया। सुप्रिय कारागार में भी अपने नित्यनियम के अनुसार भगवान्‌ शिव की पूजा-आराधना करने लगा।

सुप्रिय अन्य बंदी यात्रियों को भी वह शिव भक्ति की प्रेरणा देने लगा। दारुक ने जब अपने सेवकों से सुप्रिय के विषय में यह समाचार सुना तब वह अत्यंत क्रुद्ध होकर उस कारागर में आ पहुँचा। सुप्रिय उस समय भगवान्‌ शिव के चरणों में ध्यान लगाए हुए दोनों आँखें बंद किए बैठा था। 

उस राक्षस ने उसकी यह मुद्रा देखकर अत्यंत भीषण स्वर में उसे डाँटते हुए कहा- 'अरे दुष्ट वैश्य! तू आँखें बंद कर इस समय यहाँ कौन- से उपद्रव और षड्यंत्र करने की बातें सोच रहा है?' उसके यह कहने पर भी धर्मात्मा शिवभक्त सुप्रिय की समाधि भंग नहीं हुई। अब तो वह दारुक राक्षस क्रोध से एकदम पागल हो उठा। उसने तत्काल अपने अनुचरों को सुप्रिय तथा अन्य सभी बंदियों को मार डालने का आदेश दे दिया। सुप्रिय उसके इस आदेश से जरा भी विचलित और भयभीत नहीं हुआ।

वह एकाग्र मन से अपनी और अन्य बंदियों की मुक्ति के लिए भगवान्‌ शिव से प्रार्थना करने लगा। उसे यह पूर्ण विश्वास था कि मेरे आराध्य भगवान्‌ शिवजी इस विपत्ति से मुझे अवश्य ही छुटकारा दिलाएँगे। उसकी प्रार्थना सुनकर भगवान्‌ शंकरजी तत्क्षण उस कारागार में एक ऊँचे स्थान में एक चमकते हुए सिंहासन पर स्थित होकर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हो गए।

उन्होंने इस प्रकार सुप्रिय को दर्शन देकर उसे अपना पाशुपत-अस्त्र भी प्रदान किया। इस अस्त्र से राक्षस दारुक तथा उसके सहायक का वध करके सुप्रिय शिवधाम को चला गया। भगवान्‌ शिव के आदेशानुसार ही इस ज्योतिर्लिंग का नाम नागेश्वर पड़ा।

श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग कैसे पहुंचा जाये -

  • एयर मार्ग द्वारा - जामनगर, 145 किमी दूर, निकटतम हवाई अड्डा है
  • रेल मार्ग द्वारा - द्वारका जामनगर, राजकोट (217 किलोमीटर) और अहमदाबाद (378 किलोमीटर) से जुड़ी अहमदाबाद-ओखा ब्रॉड गेज रेलवे लाइन पर एक स्टेशन है।
  • सड़क मार्ग द्वारा - जामनगर, राजकोट और द्वारका से जुड़े दूसरे नजदीकी शहरों से नियमित बस सेवा है।

।। हर हर महादेव ।।



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