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श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग - Shree Nageshwar Jyotirling

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गुजरात में द्वारका के पास नागेश्वर शिव के 12 ज्योतिर्लिंग मंदिरों में से एक है। मंदिर में ज्योतिर्लिंग को नागेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। मंदिर में स्थित ज्योतिर्लिंग को सभी प्रकार के जहरों से रक्षा करना माना जाता है। यह माना जाता है कि जो मंदिर में प्रार्थना करता है वह जहरीला मुक्त होता है। इस पवित्र ज्योतिर्लिंग के दर्शन की शास्त्रों में बड़ी महिमा बताई गई है। कहा गया है कि जो श्रद्धापूर्वक इसकी उत्पत्ति और माहात्म्य की कथा सुनेगा वह सारे पापों से छुटकारा पाकर समस्त सुखों का भोग करता हुआ अंत में भगवान्‌ शिव के परम पवित्र दिव्य धाम को प्राप्त होगा। भगवान्‌ शिव का यह प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग गुजरात प्रांत में द्वारकापुरी से लगभग 17 मील की दूरी पर स्थित है। हर साल हजारों तीर्थयात्रियों द्वारा मंदिर का दौरा किया जाता है। यह मंदिर गुजरात में द्वारका और द्वारका द्वीप सूरत के तट पर स्थित है। किंवदंतियों के अनुसार, सुप्रिय नामक एक भक्त को एक नाव में दानूक नामक दानव ने हमला किया था। श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के बारे में - दिवंगत गुलशन कुमार द्वारा वर्तमान मंदिर का पुन...

नमक का स्वाद - Taste of Salt (Shri Krishna and Satyabhama)

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एक बार सत्यभामा ने श्रीकृष्ण से पूछा - मैं आप को कैसी लगती हूँ ? श्रीकृष्ण ने कहा तुम मुझे नमक जैसी लगती हो। सत्यभामा इस तुलना को सुन कर क्रुद्ध हो गयी, तुलना भी की तो किस से, आपको इस संपूर्ण विश्व में मेरी तुलना करने के लिए और कोई पदार्थ नहीं मिला। श्रीकृष्ण ने उस वक़्त तो किसी तरह सत्यभामा को मना लिया और उनका गुस्सा शांत कर दिया। कुछ दिन पश्चात श्रीकृष्ण ने अपने महल में एक भोज का आयोजन किया। छप्पन भोग की व्यवस्था हुई। श्रीकृष्ण ने सर्वप्रथम आठों पटरानियों को, जिनमें पाकशास्त्र में निपुण सत्यभामा भी थी, से भोजन प्रारम्भ करने का आग्रह किया। सत्यभामा ने पहला कौर मुँह में डाला मगर यह क्या.. सब्जी में नमक ही नहीं था। सत्यभामा ने उस कौर को मुँह से निकाल दिया। फिर दूसरा कौर मावा-मिश्री का मुँह में डाला और फिर उसे चबाते-चबाते बुरा सा मुँह बनाया और फिर पानी की सहायता से किसी तरह मुँह से उतारा। अब तीसरा कौर फिर कचौरी का मुँह में डाला और फिर.. आक्..थू ! तब तक सत्यभामा का पारा सातवें आसमान पर पहुँच चुका था। जोर से चीखीं.. किसने बनाई है यह रसोइ ? सत्यभामा की आवाज सुन कर श्रीकृष्ण दौड़ते ह...

श्री माधवेन्द्र पुरीपाद जी के जीवन की एक सत्य घटना - A Real Incident of Shri Madhvendra Puripad Ji

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एक बार श्री माधवेन्द्र पुरीपाद जी अपने श्री गोवर्धनधारी गोपाल के लिए चन्दन लेने पूर्व देश की ओर गए। चलते - चलते वह ओड़िसा के रेमुणा नामक स्थान पर पहुंचे। वहां पर श्री गोपीनाथ जी के दर्शन कर वह बहुत प्रसन्न हुए। कुछ ही समय में ''अमृतकेलि'' नामक खीर का भोग श्री गोपीनाथ जी को लगाया गया। तब उनके मन में विचार आया कि बिना मांगे ही इस खीर का प्रसाद मिल जाता तो मैं उसका आस्वादन करके, ठीक उसी प्रकार का भोग अपने गोपाल जी को लगाता किन्तु साथ ही साथ अपने आपको धिक्कार दिया कि मेरी खीर खाने की इच्छा हुई। ठाकुर जी की आरती दर्शन करके और उन्हें प्रणाम करके वह मंदिर से चले गये व एक निर्जन स्थान पर बैठ कर हरिनाम का जाप करने लगे। इधर मंदिर के पुजारी ठाकुर गोपीनाथ जी की सेवा कार्य समाप्त कर सो गए। उसे स्वप्न में ठाकुर जी ने दर्शन दिये व कहा- ''पुजारी उठो ! मंदिर के दरवाज़े खोलो। मैंने एक संन्यासी के लिये खीर रखी हुई है जो कि मेरे आंचल के कपड़े से ढकी हुई है। मेरी माया के कारण तुम उसे नहीं जान पाये। माधवेन्द्र पुरी नाम के संन्यासी कुछ ही दूर एक निर्जन स्थान पर...

सुदामा जी को गरीबी क्यों मिली? - Why Did Sudama Get Poverty?

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अगर अध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखा जाये तो सुदामा जी बहुत धनवान थे। जितना धन उनके पास था, उतना धन किसी के पास नहीं था, पर भौतिक दृष्टि से वह बहुत निर्धन थे। आखिर क्यों, सुदामा जी को गरीबी मिली ? एक ब्राह्मणी थी जो बहुत गरीब निर्धन थी। भिक्षा माँग कर जीवन यापन करती थी। एक समय ऐसा आया कि पाँच दिन तक उसे भिक्षा नहीं मिली तो वह प्रतिदिन पानी पीकर भगवान का नाम लेकर सो जाती थी। छठवें दिन उसे भिक्षा में दो मुट्ठी चना मिले। कुटिया तक पहुँचते-पहुँचते रात हो गयी। ब्राह्मणी ने सोचा, अब ये चने रात में नही खाऊँगी। प्रात:काल वासुदेव को भोग लगाऊंगी तब खाऊँगी। यह सोचकर ब्राह्मणी ने चनों को कपड़े में बाँधकर रख दिया और वासुदेव का नाम जपते-जपते सो गयी। समय का खेल देखिए कहते हैं "पुरुष बली नहीं होत है समय होत बलवान"। ब्राह्मणी के सोने के बाद कुछ चोर चोरी करने के लिए उसकी कुटिया में आ गये। इधर-उधर ढूँढने पर चोरों को वह चनों की बँधी पोटली मिल गयी चोरों ने समझा इसमें सोने के सिक्के हैं। इतने में ब्राह्मणी जाग गयी और शोर मचाने लगी। गाँव के सारे लोग चोरों को पकड़ने के लिए दौड़े। पकड़े जाने ...

विष्णु भक्त बालक महिदास की कहानी - Story of Lord Vishnu Devotee Child Mahidas (भक्तों के भगवान)

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भगवान अपने भक्त का हमेशा ध्यान रखते है। अगर भक्त सभी मुश्किलों को झेलते हुए अपने ईश्वर पर विश्वास करता है तो भगवान भी ऐसे भक्त के लिए कुछ भी कर देते हैं। हमारे इतिहास में वैसे इस तरह की कई कहानियां हैं लेकिन संत महिदास जी की कथा को बहुत ही कम लोग जानते हैं। एक बच्चा जो विष्णु भगवान को बहुत मानता था और इनकी आराधना करता था। उसके पिता उसे निकम्मा समझते थे और समाज भी इज्जत नहीं देता था। एक बार बालक परेशान हुआ तो कहते हैं कि भगवान विष्णु धरती फाड़कर उसमें से प्रकट हुए थे। तो आइये आज इसी बालक महिदास की कहानी पढ़ते हैं। पेश है आज का विशेष- भक्तों के भगवान। हारीत ऋषि के वंश में माणडूकि नाम के विधान थे। कहते हैं कि इनकी कई पत्नियाँ थीं। इसीलिए शायद शास्त्रों में यह ऋषि काफी विवादों से घिरे हुए रहे हैं। अनेक पत्नियों में से एक पत्नी का नाम इतरा था। इन्हीं से जन्म लेने वाले पुत्र का नाम महिदास था। लेकिन यहाँ पर इस ऋषि के नाम पर कुछ विवाद हैं। पहला विवाद यह है कि हारीत ऋषि खुद तो हारित थे तो इनका बच्चा कैसे ‘मही’-‘दास’ बोला जाता है। क्योकि दास एक छोटी जाति का सूचक है। तो क...

नरेंद्र मोदी जी के बचपन का किस्सा 'जब गाय ने छोड़ दिया शरीर...' - An Anecdote of The Childhood of Narendra Modi

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साबरमती आश्रम(अहमदाबाद) में गौरक्षा के नाम पर हो रही हिंसा को लेकर नरेंद्र मोदी जी अपनी बात रखते हुए भावुक हो गए। उन्होंने अपने बचपन का एक किस्सा सुनाकर गौ-रक्षकों को अहिंसा का संदेश दिया। मोदी जी ने कहा- ''देशवासियों से आग्रह करता हूं कि हिंसा समस्याओं का समाधान नहीं है। महात्मा गांधी-विनोबा भावे जीवनभर गौरक्षा के लिए लड़ते रहे। लेकिन क्या हमें किसी इंसान को मारने का हक मिल जाता है? क्या ये गौ-भक्ति है? क्या ये गौ-रक्षा है? ये गांधीजी, विनोबाजी का रास्ता नहीं हो सकता, जिन्होंने गौ-रक्षा के लिए अपना सारा जीवन समर्पित कर दिया।''     मोदी जी ने सुनाई गाय की कहानी... मोदी जी ने कहा- ''मेरे जीवन की एक घटना है, जिसे मैं लिखना चाहता था। मैं बालक था। गांव में मेरा घर एक छोटी-सी गली में है। हमारे घर से सामने एक परिवार था, जो मजदूरी करता था। उनकी कोई संतान नहीं थी। परिवार में इसे लेकर तनाव रहता था। बहुत देर में उनके यहां संतान हुई।'' ''मोहल्ले में बहुत संकरी गली थी। एक गाय रोज घरों के सामने आती थी। एक बार अचानक कोई हलचल हो गई। गाय ...

नरसी मेहता जी के जीवन की एक सत्य घटना - A Real Incident of the Life of Narsi Mehta Ji

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एक बार नरसी जी का बड़ा भाई वंशीधर नरसी जी के घर आया। पिता जी का वार्षिक श्राद्ध करना था। वंशीधर ने नरसी जी से कहा- "कल पिता जी का वार्षिक श्राद्ध करना है। कहीं अड्डेबाजी मत करना। बहु को लेकर मेरे यहाँ आ जाना। काम-काज में हाथ बटाओगे तो तुम्हारी भाभी को आराम मिलेगा।" नरसी जी ने कहा- "पूजा पाठ करके ही आ सकूँगा।" इतना सुनना था कि वंशीधर उखड गए और बोले- "जिन्दगी भर यही सब करते रहना। जिसकी गृहस्थी भिक्षा से चलती है, उसकी सहायता की मुझे जरूरत नहीं है। तुम पिताजी का श्राद्ध अपने घर पर अपने हिसाब से कर लेना।" नरसी जी ने कहा- "नाराज क्यों होते हो भैया? मेरे पास जो कुछ भी है, मैं उसी से श्राद्ध कर लूँगा।" नगर-मंडली को मालूम हो गया कि दोनों भाईयों के बीच श्राद्ध को लेकर झगडा हो गया है। नरसी अलग से श्राद्ध करेगा, ये सुनकर नगर मंडली ने बदला लेने की सोची। पुरोहित प्रसन्न राय ने सात सौ ब्राह्मणों को नरसी के यहाँ आयोजित श्राद्ध में आने के लिए आमंत्रित कर दिया। प्रसन्न राय ये जानते थे कि नरसी का परिवार मांगकर भोजन करता है। वह क्या सात सौ ब्राह्मणों को ...

राम से बड़ा राम का नाम क्यों ? - Why Ram Name is More Powerful Than God Ram

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राम दरबार में एक बार हनुमान जी महाराज श्री राम की सेवा में इतने तन्मय हो गए कि, गुरू वशिष्ठ के आने का उनको ध्यान ही नहीं रहा। सबने उठ कर उनका अभिवादन किया पर, हनुमान जी नहीं कर पाए। गुरू वशिष्ठ जी ने इस अपमान से क्रोधित हो कर राम से हनुमान के लिए मृत्युदंड माँगा, वो भी राम के अमोघ बाण से जो अचूक शस्त्र था। महाराज श्री राम ने कहा स्वीकार है। दरबार में राम ने घोषणा की कि कल संध्याकाल में सरयु नदी के तट पर हनुमान जी को मैं स्वयं अपने अमोघ बाण से मृत्यु दण्ड दूँगा। हनुमानजी के घर पहुँचने पर माता अंजनी ने हनुमान से उदासी का कारण पूछा तो हनुमान ने अनजाने में हुई अपनी गलती और अन्य सारा घटनाक्रम बताया। माता अंजनी को मालूम था कि समस्त ब्रम्हाण्ड में हनुमान को कोई मार नहीं सकता और राम के अमोघ बाण से भी कोई बच भी नहीं सकता। माता अंजनी ने कहा- "मैंने भगवान शंकर से, 'राम नाम' मंत्र प्राप्त किया था और तुम्हें यह नाम घुटी में पिलाया है। उस 'राम नाम' मंत्र के होते कोई तुम्हारा बाल भी बांका नहीं कर सकता। चाहे वे स्वयं राम ही क्यों ना हों। 'राम नाम' की शक्ति के ...