विष्णु भक्त बालक महिदास की कहानी - Story of Lord Vishnu Devotee Child Mahidas (भक्तों के भगवान)
भगवान अपने भक्त का हमेशा ध्यान रखते है। अगर भक्त सभी मुश्किलों को झेलते हुए अपने ईश्वर पर विश्वास करता है तो भगवान भी ऐसे भक्त के लिए कुछ भी कर देते हैं। हमारे
इतिहास में वैसे इस तरह की कई कहानियां हैं लेकिन संत महिदास जी की कथा को
बहुत ही कम लोग जानते हैं।
एक बच्चा जो विष्णु भगवान को बहुत मानता था और इनकी आराधना करता था। उसके पिता उसे निकम्मा समझते थे और समाज भी इज्जत नहीं देता था। एक बार बालक परेशान हुआ तो कहते हैं कि भगवान विष्णु धरती फाड़कर उसमें से प्रकट हुए थे। तो आइये आज इसी बालक महिदास की कहानी पढ़ते हैं। पेश है आज का विशेष- भक्तों के भगवान।
स्कन्द पुराण बताता है कि महिदास बचपन से ही विष्णु के मन्त्र का जाप करते थे। एक यही कारण था कि इनके पिता माणडूकि इनको बेकार समझते थे। कुछ समय बाद पिता ने रोज ही इस बालक को अपमानित करना शुरू कर दिया था। इस बात को देखकर महिदास की माँ बहुत निराश रहने लगी थी। वह खिन्न थी क्योकि पिता इसके बच्चे का अपमान करता था और दूसरी पत्नियों के बच्चों को गले से लगाकर रखता था।
एक बार यज्ञ के दौरान पिता ने एक बालक को अपनी गोद में बैठा लिया और हरिदास को जमीन पर ही रहने दिया। इस बात से हरिदास और उसकी माँ को काफी चोट पहुंची और माँ ने धरती फट जाए ऐसा बोला। तब कहते हैं कि तुरंत धरती फटती है और विष्णु भगवान सोने का सिंहासन लिए प्रकट होते हैं। यह सिंहासन हरिदास के लिए था। एक भक्त की भक्ति से प्रसन्न होकर खुद भगवान प्रकट हुए थे।
बाद में इसी बालक ने ब्राह्मण ग्रन्थ का निर्माण कर इतिहास लिखा है। यह कथा दर्शाती है कि भगवान बिना बोले भी भक्त की परेशानी समझते हैं और वक़्त आने पर उसका हल भी निकाल देते हैं।
एक बच्चा जो विष्णु भगवान को बहुत मानता था और इनकी आराधना करता था। उसके पिता उसे निकम्मा समझते थे और समाज भी इज्जत नहीं देता था। एक बार बालक परेशान हुआ तो कहते हैं कि भगवान विष्णु धरती फाड़कर उसमें से प्रकट हुए थे। तो आइये आज इसी बालक महिदास की कहानी पढ़ते हैं। पेश है आज का विशेष- भक्तों के भगवान।
हारीत ऋषि के वंश में माणडूकि नाम के विधान थे। कहते हैं कि इनकी कई
पत्नियाँ थीं। इसीलिए शायद शास्त्रों में यह ऋषि काफी विवादों से घिरे हुए
रहे हैं। अनेक पत्नियों में से एक पत्नी का नाम इतरा था। इन्हीं से जन्म लेने वाले पुत्र का नाम महिदास था। लेकिन
यहाँ पर इस ऋषि के नाम पर कुछ विवाद हैं।
पहला विवाद यह है कि हारीत ऋषि खुद तो हारित थे तो इनका बच्चा कैसे ‘मही’-‘दास’ बोला जाता है। क्योकि दास एक छोटी जाति का सूचक है। तो कुछ विद्वान कहते हैं कि इनकी कई पत्नियों में से यह पत्नी शायद छोटी जाति से थी इसलिए बच्चा महिदास ही रहा। बाद में जब बच्चे को पिता का नाम नहीं मिला तो इसने माता का नाम खुद के साथ जोड़ते हुए, खुद को महिदास हारीत की बजाय महिदास ऐतरेय बोला।
पहला विवाद यह है कि हारीत ऋषि खुद तो हारित थे तो इनका बच्चा कैसे ‘मही’-‘दास’ बोला जाता है। क्योकि दास एक छोटी जाति का सूचक है। तो कुछ विद्वान कहते हैं कि इनकी कई पत्नियों में से यह पत्नी शायद छोटी जाति से थी इसलिए बच्चा महिदास ही रहा। बाद में जब बच्चे को पिता का नाम नहीं मिला तो इसने माता का नाम खुद के साथ जोड़ते हुए, खुद को महिदास हारीत की बजाय महिदास ऐतरेय बोला।
स्कन्द पुराण बताता है कि महिदास बचपन से ही विष्णु के मन्त्र का जाप करते थे। एक यही कारण था कि इनके पिता माणडूकि इनको बेकार समझते थे। कुछ समय बाद पिता ने रोज ही इस बालक को अपमानित करना शुरू कर दिया था। इस बात को देखकर महिदास की माँ बहुत निराश रहने लगी थी। वह खिन्न थी क्योकि पिता इसके बच्चे का अपमान करता था और दूसरी पत्नियों के बच्चों को गले से लगाकर रखता था।
एक बार यज्ञ के दौरान पिता ने एक बालक को अपनी गोद में बैठा लिया और हरिदास को जमीन पर ही रहने दिया। इस बात से हरिदास और उसकी माँ को काफी चोट पहुंची और माँ ने धरती फट जाए ऐसा बोला। तब कहते हैं कि तुरंत धरती फटती है और विष्णु भगवान सोने का सिंहासन लिए प्रकट होते हैं। यह सिंहासन हरिदास के लिए था। एक भक्त की भक्ति से प्रसन्न होकर खुद भगवान प्रकट हुए थे।
बाद में इसी बालक ने ब्राह्मण ग्रन्थ का निर्माण कर इतिहास लिखा है। यह कथा दर्शाती है कि भगवान बिना बोले भी भक्त की परेशानी समझते हैं और वक़्त आने पर उसका हल भी निकाल देते हैं।
(प्रस्तुत कहानी की सत्यता
स्कन्द पुराण और भारत गाथा नामक पुस्तक से जाँची जा सकती हैं। कहानी के कई
प्रकार के अन्य रूप भी हैं, किन्तु कहानी का अंत हर जगह यही है।)
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