सुख की माया में खोए मन को भगवान भी नहीं बचा सकते - God Can't Save The Lost Mind in Happiness
एक इंसान घने जंगल में भागा जा रहा था। शाम हो गई थी इसलिए अंधेरे में कुआं दिखाई नहीं दिया और वह उसमें गिर गया। गिरते-गिरते कुएं पर झुके पेड़ की एक डाल उसके हाथ में आ गई। जब उसने नीचे
झांका, तो देखा कि कुएं में चार अजगर मुंह खोले उसे देख रहे हैं।
जिस डाल को वह पकड़े हुए था, उसे दो चूहे कुतर रहे थे। इतने में एक हाथी आया और पेड़ को जोर-जोर से हिलाने लगा। वह घबरा गया और सोचने लगा कि हे भगवान अब क्या होगा ?
उसी पेड़ पर एक मधुमक्खियों का छत्ता लगा हुआ था। हाथी के पेड़ को हिलाने से मधुमक्खियां उडऩे लगीं और शहद की बूंदें टपकने लगीं। एक बूंद उसके होठों पर आ गिरी। उसने प्यास से सूख रही जीभ को होठों पर फेरा, तो उसे शहद की उस बूंद में गजब की मिठास का अनुभव हुआ। कुछ पल बाद फिर शहद की एक और बूंद उसके मुंह में टपकी। अब वह इतना मगन हो गया कि अपनी मुश्किलों को भूल गया।
तभी उस जंगल से भगवान अपने वाहन से गुजरे। भगवान ने उसके पास जाकर कहा - मैं तुम्हें बचाना चाहता हूं। मेरा हाथ पकड़ लो। उस इंसान ने कहा कि एक बूंद शहद और चाट लूं, फिर चलता हूँ। एक बूंद, फिर एक बूंद और हर एक बूंद के बाद अगली बूंद का इंतजार। आखिर थक-हारकर भगवान् चले गए।
मित्रों.. वह जिस जंगल में जा रहा था वह जंगल है
दुनिया,
कुएं में जो सर्प हैं
वो भविष्य के कर्म हैं,
अंधेरा है
अज्ञान,
पेड़ की डाली है
आयु,
दो चूहे जो उसे कुतर रहे हैं
दिन-रात,
मदमस्त हाथी जो पेड़ को उखाडऩे में लगा है
घमंड,
मदमस्त हाथी जो पेड़ को उखाडऩे में लगा है
हमारे पूर्व जन्म के कर्म हैं,
वृक्ष की शाखा वर्तमान जीवन हैं, इस शाखा रूपी जीवन को सफेद चूहा ( दिन ) और काला चूहा ( रात्रि ) बन कर शाखा ( जीवन ) को कुतर रहे हैं। ऐसी स्थिति में परमात्मा मनुष्य को हाथ बढ़ाकर थाम रहे हैं पुकार रहे हैं, किन्तु मनुष्य मधुमक्खी के छत्ते से टपक रही मधु ( शहद ) की बूंद चूसने सांसारिक सुख और पापकर्म में इतना व्यस्त हैं कि उसे परमात्मा दिखाई नहीं दे रहा हैं या देख कर भी अनदेखा कर रहा हैं। यानी, सुख की माया में खोए मन को भगवान भी नहीं बचा सकते।
जिस डाल को वह पकड़े हुए था, उसे दो चूहे कुतर रहे थे। इतने में एक हाथी आया और पेड़ को जोर-जोर से हिलाने लगा। वह घबरा गया और सोचने लगा कि हे भगवान अब क्या होगा ?
उसी पेड़ पर एक मधुमक्खियों का छत्ता लगा हुआ था। हाथी के पेड़ को हिलाने से मधुमक्खियां उडऩे लगीं और शहद की बूंदें टपकने लगीं। एक बूंद उसके होठों पर आ गिरी। उसने प्यास से सूख रही जीभ को होठों पर फेरा, तो उसे शहद की उस बूंद में गजब की मिठास का अनुभव हुआ। कुछ पल बाद फिर शहद की एक और बूंद उसके मुंह में टपकी। अब वह इतना मगन हो गया कि अपनी मुश्किलों को भूल गया।
तभी उस जंगल से भगवान अपने वाहन से गुजरे। भगवान ने उसके पास जाकर कहा - मैं तुम्हें बचाना चाहता हूं। मेरा हाथ पकड़ लो। उस इंसान ने कहा कि एक बूंद शहद और चाट लूं, फिर चलता हूँ। एक बूंद, फिर एक बूंद और हर एक बूंद के बाद अगली बूंद का इंतजार। आखिर थक-हारकर भगवान् चले गए।
मित्रों.. वह जिस जंगल में जा रहा था वह जंगल है

कुएं में जो सर्प हैं

अंधेरा है

पेड़ की डाली है

दो चूहे जो उसे कुतर रहे हैं

मदमस्त हाथी जो पेड़ को उखाडऩे में लगा है

मदमस्त हाथी जो पेड़ को उखाडऩे में लगा है

वृक्ष की शाखा वर्तमान जीवन हैं, इस शाखा रूपी जीवन को सफेद चूहा ( दिन ) और काला चूहा ( रात्रि ) बन कर शाखा ( जीवन ) को कुतर रहे हैं। ऐसी स्थिति में परमात्मा मनुष्य को हाथ बढ़ाकर थाम रहे हैं पुकार रहे हैं, किन्तु मनुष्य मधुमक्खी के छत्ते से टपक रही मधु ( शहद ) की बूंद चूसने सांसारिक सुख और पापकर्म में इतना व्यस्त हैं कि उसे परमात्मा दिखाई नहीं दे रहा हैं या देख कर भी अनदेखा कर रहा हैं। यानी, सुख की माया में खोए मन को भगवान भी नहीं बचा सकते।
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