चटोरे मदनमोहन - Chatore Madan Mohan (A Religious Story)

चटोरे-मदनमोहन-Chatore-Madan-Mohan-A-Religious-Story

सनातन गोस्वामी जी मथुरा में एक चौबे के घर मधुकरी के लिए जाया करते थे। उस चौबे की स्त्री परमभक्त और मदन मोहन जी की उपासिका थी, उसके घर बाल भाव से मदन मोहन भगवान विराजते थे। असल में सनातन जी उन्ही मदन मोहन जी के दर्शन हेतु प्रतिदिन मधुकरी के बहाने जाया करते थे।

मदन मोहन जी तो ग्वार ग्वाले ही ठहरे ये आचार विचार क्या जाने, उस चौबे के लड़के के साथ ही एक पात्र में भोजन करते थे। ये देख सनातन जी को बड़ा आश्चर्य हुआ, ये मदनमोहन तो बड़े वचित्र है। एक दिन इन्होने आग्रह करके मदन मोहन जी का उच्छिष्ठ (झूठा) अन्न मधुकरी में माँगा।

चौबे की स्त्री ने भी स्वीकार करके दे दिया, बस फिर क्या था। इन्हे उस माखन चोर की लपलपाती जीभ से लगे हुए अन्न का चश्का लग गया, ये नित्य उसी अन्न को लेने जाने लगे। एक दिन मदन मोहन ने इन्हे स्वप्न में दर्शन देकर कहा, बाबा तुम रोज इतनी दूर से आते हो, और इस मथुरा शहर में भी हमे ऊब सी मालूम होवे है। तुम उस चौबे से हमको मांग के ले आओ हमको भी तुम्हारे साथ जंगल में रहनो है। 

ठीक उसी रात को चौबे को भी यही स्वप्न हुआ की हमको आप सनातन बाबा को दान कर दो। दूसरे दिन सनातन जी गये उस चौबे के घर और कहने लगे मदन मोहन को अब जंगल में हमारे साथ रहना है, आपकी क्या इच्छा है ? कुछ प्रेमयुक्त रोष से चौबे की पत्नी ने कहा इसकी तो आदत ही ऐसी हे। जो भला अपनी सगी माँ का न हुआ तो मेरा क्या होगा और ठाकुर जी की आज्ञा जान अश्रुविमोचन करते हुए थमा दिया मदन मोहन जी को सनातनजी को।

अब मदन मोहन को लेके ये बाबा जंगल में यमुना किनारे आये और सूर्यघाट के समीप एक सुरम्य टीले पे फूस की झोपडी बना के मदन मोहन को स्थापित कर पूजा करने लगे। सनातन जी घर घर से चुटकी चुटकी आटा मांग के लाते और उसी की बिना नमक की बाटिया बना के मदन मोहन को भोग लगाते।

एक दिन मदन मोहन जी ने मुँह बिगाड़ के कहा ओ बाबा ये रोज रोज बिना नमक की बाटी हमारे गले से नीचे नहीं उतरती, थोड़ा नमक भी मांग के लाया करो ना। सनातन जी ने झुँझलाकर कहा - यह इल्लत मुझसे न लगाओ, खानी हो तो ऐसी ही खाओ वरना अपने घर का रास्ता पकड़ो।

मदन मोहन ने हस के कहा - एक कंकड़ी नमक के लिये कौन मना करेगा, और ये जिद करने लगे। दूसरे दिन ये आटे के साथ थोड़ा नमक भी मांग के लाने लगे। चटोरे मदन मोहन को तो माखन मिश्री की चट पड़ी थी। एक दिन बड़ी दीनता से बाबा से बोले- बाबा ये रूखे टिक्कड तो रोज रोज खावे ही न जाये, थोड़ा माखन या घी भी कही से लाया करो तो अच्छा रहेगा।

अब तो सनातन जी मदन मोहन को खरी-खोटी सुनाने लगे, उन्होंने कहा - देखो जी मेरे पास तो यही सूखे टिक्कड है। तुम्हे घी और माखन मिश्री की चट थी तो कही धनी सेठ के वहां जाते, ये भिखारी के वहां क्या करने आये हो। तुम्हारे गले से उतरे चाहे न उतरे, में तो घी-बुरा माँगने बिल्कुल नही जाने वाला, थोड़े यमुना जी के जल के साथ सटक लिया करो ना। मिट्टी भी तो सटक लिया करते थे।

बेचारे मदन मोहन जी अपना मुँह बनाए चुप हो गये, उस लंगोटि बन्ध साधु से और कह भी क्या सकते थे। दूसरे दिन सनातन जी ने देखा कोई बड़ा धनिक व्यापारी उनके समीप आ रहा है, आते ही उसके सनातन जी को दण्डवत प्रणाम किया और करुण स्वर में कहने लगा - महात्मा जी मेरा जहाज बीच यमुना जी में अटक गया है, ऐसा आशीर्वाद दीजिये की वो निकल जाये, सनातन जी ने कहा भाई में कुछ नही जानता, इस झोपडी में जो बैठा है न उससे जाके कहो।

व्यापारी ने झोपड़े में जा के मदन मोहन जी से प्रार्थना की, बस फिर क्या था इनकी कृपा से जहाज उसी समय निकल गया, उसी समय उस व्यापारी ने हजारो रूपए लगा के बड़ी उदारता के साथ मदन मोहन जी का वही भव्य मंदिर बनवा दिया, और भगवान की सेवा के लिए बहुत सारे सेवक, रसोइये और नोकर चाकर रखवा दिये।
।। जय जय श्री राधे ।।





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