हम रामकथा क्यों सुने ? Why do we listen Ram Katha?


रामकथा सुंदर कर तारी। संसय बिहग उड़ावनिहारी॥

रामकथा कलि बिटप कुठारी। सादर सुनु गिरिराजकुमारी॥

भावार्थ :- श्री रामचन्द्रजी की कथा हाथ की सुंदर ताली है, जो संदेह रूपी पक्षियों को उड़ा देती है। फिर रामकथा कलियुग रूपी वृक्ष को काटने के लिए कुल्हाड़ी है। हे गिरिराजकुमारी! तुम इसे आदरपूर्वक सुनो॥

राम कथा और भगवान कथा की महिमा -
बंधुओं, भगवान श्री राम ने कुछ ही जीवों का उद्धार किया होगा। हजारों, लाखों का। लेकिन भगवान श्री राम की कथा  तो आज भी करोड़ों लोगो का उद्धार कर रही है।

राम कथा सुनो , कृष्ण कथा सुनो, हरी कथा सुनो, शिव कथा सुनो आपके जो भी इष्ट देव है उनकी कथा सुनों, क्योंकि इस धरती पर अगर वास्तव में कुछ सुनने के लिए है तो वो है सिर्फ भगवान की कथा। और जिसने सुनी हैं तो दोबारा सुनो।

राम चरित्र को जीवन में धारण करने की कोशिश करो। यदि कोई कहे की हमने रामायण पढ़ ली हैं। देखिये तुलसीदास जी कितना सुंदर कह रहे हैं-

राम चरित जे सुनत अघाहीं। रस बिसेष जाना तिन्ह नाहीं॥
जीवनमुक्त महामुनि जेऊ। हरि गुन सुनहिं निरंतर तेऊ॥

भावार्थ :- श्री रामजी के चरित्र सुनते-सुनते जो तृप्त हो जाते हैं (बस कर देते हैं), उन्होंने तो उसका विशेष रस जाना ही नहीं। जो जीवन्मुक्त महामुनि हैं, वे भी भगवान्‌ के गुण निरंतर सुनते रहते हैं॥

उन्होंने भगवान की कथा को जाना ही नहीं जिसने कहा की बस-बस बहुत कथा सुन ली। क्योंकि भगवान की कथा आपकी प्यास बढाती हैं।

कुछ लोग कहते हैं की कथा में क्या रखा हैं?

एक बार खुद कथा में आकर देखो तभी तो जान पाओगे की कथा में रखा क्या हैं। यदि किसी व्यक्ति को तैरना सीखना हैं तो पानी में जाना पड़ेगा। उसी तरह से आनंद चाहिए तो कथा में आओ ज़माने में क्या रखा हैं।

भव सागर चह पार जो पावा। राम कथा ता कहँ दृढ़ नावा॥
बिषइन्ह कहँ पुनि हरि गुन ग्रामा। श्रवन सुखद अरु मन अभिरामा॥

भावार्थ :- जो लोग इस संसार रूपी भवसागर से पार पाना चाहते हैं उसके लिए सिर्फ राम नाम की नौका काफी हैं। बस एक बार आप भगवान के नाम पर विश्वास करके बैठ जाइये। भगवान श्री राम आपका खुद ही बेडा पार कर देंगे। और जो लोग संसार के विषयों को और सुखों को ढूंढने में लगे हैं भगवान के गुण तो उन लोगो को भी आनंद प्रदान करते हैं।

ऐसा कौन होगा जिसे भगवान की कथा अच्छी नही लगती होगी और उसमे से भी विशेषकर श्री राम जी की कथा।

तुलसीदास जी बहुत सुंदर लिखते हैं-

श्रवनवंत अस को जग माहीं। जाहि न रघुपति चरित सोहाहीं॥
ते जड़ जीव निजात्मक घाती। जिन्हहि न रघुपति कथा सोहाती॥

भावार्थ :- जगत्‌ में कान वाला ऐसा कौन है, जिसे श्री रघुनाथजी के चरित्र न सुहाते हों। जिन्हें श्री रघुनाथजी की कथा नहीं सुहाती, वे मूर्ख जीव तो अपनी आत्मा की हत्या करने वाले हैं॥

आपने देखा होगा कुछ लोग आत्महत्या कर लेते हैं, कुछ बुरे लोग दूसरो की हत्या भी कर देते हैं। लेकिन ये सब शरीर की हत्या करते हैं। तुलसीदास जी कहते हैं अरे मूरख जीव, तूने तो अपनी आत्मा की ही हत्या कर डाली की भगवान का चरित्र ना तूने सुना और ना तुझे सुहाया। इसलिए राम जी की कथा जरूर सुनिए।

तुलसीदास जी कहते हैं की राम कथा तो चन्द्रमा की किरणों के समान शीतलता प्रदान करने वाली हैं। किसी ने कहा की राम कथा को चन्द्रमा के समान क्यों नही कहा?

क्योंकि चन्द्रमा की किरणे सबको शीतलता प्रदान करती हैं। और जब चन्द्रमा की किरणे धरती पर पड़ती हैं तो सब जगह समान रूप से जाती हैं। वह ये नही देखती की ये गरीब की कुटिया हैं या आमिर की कुटिया। इसी तरह से राम कथा भी सबके लिए हैं और सबको शीतलता प्रदान करती हैं।

रामकथा ससि किरन समाना। संत चकोर करहिं जेहि पाना॥ 

भावार्थ :- श्री रामजी की कथा चंद्रमा की किरणों के समान है, जिसे संत रूपी चकोर सदा पान करते हैं। और इस कथा को चकोर रूपी संत हमेशा पीते रहते हैं।

आप सभी जानते हो चकोर को चन्द्रमा की चांदनी से कितना प्रेम होता हैं। इसी तरह संत लोग बस कथा का ही पान करते हैं।

किसी ने कहा की कितनी बार सुनें? कितनी बार इस कथा रस का पान करें?

तो संत जन बड़ा सुन्दर बताते हैं की जब तक जियो तब तक पियो।

बिनु सतसंग न हरि कथा तेहि बिनु मोह न भाग।
मोह गएँ बिनु राम पद होइ न दृढ़ अनुराग॥

भावार्थ :- सत्संग के बिना हरि की कथा सुनने को नहीं मिलती, उसके बिना मोह नहीं भागता और मोह के गए बिना श्री रामचंद्रजी के चरणों में दृढ़ (अचल) प्रेम नहीं होता॥

राम कृपाँ नासहिं सब रोगा। जौं एहि भाँति बनै संजोगा॥
सदगुर बैद बचन बिस्वासा। संजम यह न बिषय कै आसा॥

भावार्थ :- यदि श्री रामजी की कृपा से इस प्रकार का संयोग बन जाए तो ये सब रोग नष्ट हो जाएँ। सद्गुरु रूपी वैद्य के वचन में विश्वास हो। विषयों की आशा न करे, यही संयम (परहेज) हो॥

भगवान की कथा दैहिक, दैविक और भौतिक तीनो ताप को मिटा देती है। श्रीमद भागवत कथा के अंतर्गत आया है की एक बार देवता कथा सुनने के बदले ऋषियों के पास अमृत लेकर पहुंचे थे। तब उन संतो ने कहा का कहाँ मेरी मणि रूपी कथा और कहाँ तुम्हारा कांच रूपी अमृत।

कहने का तात्पर्य भगवान की कथा तो अमृत से भी बढ़कर है। आपने देखा होगा हनुमानजी महाराज जहाँ भी कथा होती है वहां जरूर होते है। क्योंकि हनुमानजी को कथा से बहुत अधिक प्रेम है। इसलिए भगवान की कथा का जरूर श्रवण करें। और फिर फिर स्मरण करें। बस ये दो काम ही काफी है।



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