भजन: ओ मैया मैहर वाली क्या तेरे मन में समाई - O Maiya Maihar Wali Kya Tere Man Me Samaai
ओ मैया मैहर वाली क्या तेरे मन में समाई,
पर्वत पै कुटिया बनाई, तूने पर्वत पै कुटिया बनाई।
ओ मैया मैहर वाली क्या तेरे मन में समाई,
पर्वत पै कुटिया बनाई, तूने पर्वत पै कुटिया बनाई।
मंदिर है तेरा मैया सबसे निराला, पाता है दर्शन किस्मत वाला,
भक्तों को अपने दर पै तूने बुलाया - २
दर पै बुलाके कष्ट उनका मिटाया,
तेरी सुहानी सूरत भक्तों के मन को है भाई,
पर्वत पै कुटिया बनाई, तूने पर्वत पै कुटिया बनाई।
ओ मैया मैहर वाली क्या तेरे मन में समाई,
पर्वत पै कुटिया बनाई, तूने पर्वत पै कुटिया बनाई।
जाते हैं तेरे द्वारे भक्त दीवाने, कितने भी रोड़े आएं फिरभी न माने,
आल्हा को अम्बे तूने अमृत पिलाया - २
अमृत पिलाके दास अपना बनाया,
कोई न खाली जाये करती है सबकी भलाई,
पर्वत पै कुटिया बनाई, तूने पर्वत पै कुटिया बनाई।
ओ मैया मैहर वाली क्या तेरे मन में समाई,
पर्वत पै कुटिया बनाई, तूने पर्वत पै कुटिया बनाई ओ मैया वाली।
कौन बड़ा और कौन है छोटा, कौन खरा और कौन है खोटा,
तेरी नज़र में तो सब हैं बराबर - २
सबको को खुला है, ओ मैया तेरा दर,
नैया तूने ओ मैया दुखियों की पार लगाई,
पर्वत पै कुटिया बनाई, तूने पर्वत पै कुटिया बनाई।
ओ मैया वाली क्या तेरे मन में समाई,
पर्वत पै कुटिया बनाई, तूने पर्वत पै कुटिया बनाई ओ मैया वाली।
गीतकार - मनोज कुमार खरे
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