कृष्ण बलराम का मथुरा गमन - Krishna Balram Goes to Mathura (व्याकुल हो उठीं गोपियां)

कंस के आदेश पर अक्रूर जी कृष्ण और बलराम को लेने के लिए ब्रज में आये। गोपियों सहित ब्रजवासियों के लिए आज की रात्रि बड़ी कठोर है। अक्रूर जी अपने नाम के विपरीत क्रूर बनकर प्रातःकाल श्याम सुंदर व बलदाऊ को लेकर जाएंगे। गोपियों को यह रात्रि कालरात्रि के समान प्रतीत हो रही है। कल तक जिस नंदभवन में हँसी-ठिठोली के स्वर गुंजायमान होते थे, आज वहां सन्नाटा पसरा हुआ है। 

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जहाँ प्रतिदिन महल में दीपमालिका सहस्त्र दीपों से महल को प्रकाशमान करती थी वहां आज अन्धकार व्याप्त है। पूर्णिमा का चाँद भी घटाओं में अपने आंसू बहाने को मजबूर है। उसे डर है कहीं कृष्ण उन्हें रोते हुए न देख लें। वातावरण में प्रवाहित मंद-सुगन्धित समीर शांत है। लता-पता, पुष्प, नर-नारी, गौ-धन, पशु-पक्षी घनश्याम के वियोग का सुनकर व्यथित हैं। 

यमुना, पनघट, सखियाँ उस रात्रि के बीत जाने का सोचती वहीँ प्रातः उदय होने वाले सूर्य को कैसे देख पाएंगी यह सोचकर मन के अंदर ही अंदर रुदन करने लगती। कृष्ण से वियोग नहीं चाहने वाला प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि अनंतकाल तक उस रात्रि का अंत नहीं हो पाए।

यह सब प्रेम के ही अधीन है। जो ईश्वर से प्रेम करता है वह किसी भी सूरत में उसका वियोग सहन नहीं कर पाएगा।

।। जय जय श्रीराधे ।।





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