भजन: इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले - Itna To Karna Swami Jab Pran Tan Se Nikle
इतना तो करना स्वामी, जब प्राण तन से निकले ।
गोविन्द नाम लेकर, तब प्राण तन से निकले ।।
श्री गंगाजी का तट हो, यमुना का वंशी वट हो ।
मेरा सांवरा निकट हो, जब प्राण तन से निकले ।।१।।
इतना तो करना स्वामी, जब प्राण तन से निकले...
पीताम्बरी कसी हो, छवि मन में यही बसी हो ।
होठों पे कुछ हंसी हो, जब प्राण तन से निकले ।।२।।
इतना तो करना स्वामी, जब प्राण तन से निकले...
श्री वृन्दावन का स्थल हो, मेरे मुख में तुलसी दल हो ।
विष्णु चरण का जल हो, जब प्राण तन से निकले ।।३।।
इतना तो करना स्वामी, जब प्राण तन से निकले...
केसर तिलक हो आला, गाल वैजयंती माला ।
मुख चंद्र सा उजाला, जब प्राण तन से निकले ।।४।।
इतना तो करना स्वामी, जब प्राण तन से निकले...
मेरा प्राण निकले सुख से, तेरा नाम निकले मुख से ।
बच जाऊं घोर दुःख से, जब प्राण तन से निकले ।।५।।
इतना तो करना स्वामी, जब प्राण तन से निकले...
जब प्राण कंठ आये, कोई रोग ना सताए ।
यम दरस न दिखाए, जब प्राण तन से निकले ।।६।।
इतना तो करना स्वामी, जब प्राण तन से निकले...
उस वक़्त शीघ्र आना, नहीं श्याम भूल जाना ।
राधे को साथ लाना, जब प्राण तन से निकले ।।७।।
इतना तो करना स्वामी, जब प्राण तन से निकले...
सुधि नाही होवे तन की, तैयारी हो गमन की ।
लकड़ी हो ब्रज के वन की, जब प्राण तन से निकले ।।८।।
इतना तो करना स्वामी, जब प्राण तन से निकले...
एक भक्त की है अर्जी, खुदगर्ज की है गरजी ।
आगे तुम्हारी मर्जी, जब प्राण तन से निकले ।।९।।
इतना तो करना स्वामी, जब प्राण तन से निकले...
ये नेक सी अरज है, मानो तो क्या हरज है ।
कुछ आप का फरज है, जब प्राण तन से निकले ।।१०।।
इतना तो करना स्वामी, जब प्राण तन से निकले...
Comments
Post a Comment