संकटमोचन हनुमानाष्टक - Sankatmochan Hanumanashtak (गोस्वामी तुलसीदास कृत)
बाल समय रबि भक्षी लियो तब, तीनहुँ लोक भयो अँधियारो ।
ताहि सों त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सों जात न टारो ।।
देवन आनि करी बिनती तब, छाँड़ि दियो रबि कष्ट निवारो ।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो ।।
बालि की त्रास कपीस बसै गिरि, जात महाप्रभु पंथ निहारो ।
चौंकि महा मुनि शाप दियो तब, चाहिय कौन बिचार बिचारो ।।
कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभु, सो तुम दास के सोक निवारो ।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो ।।
अंगद के सँग लेन गये सिय, खोज कपीस यह बैन उचारो ।
जीवत ना बचिहौ हम सो जु, बिना सुधि लाए इहाँ पगु धारौ ।।
हेरि थके तट सिंधु सबै तब, लाय सिया-सुधि प्रान उबारों ।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो ।।
रावन त्रास दई सिय को तब, राक्षसि सों कहि सोक निवारो ।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु, जाय महा रजनीचर मारो ।।
चाहत सिय असोक सो आगि सु, दै प्रभु मुद्रिका सोक निवारो ।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो ।।
बान लग्यो उर लछिमन के तब, प्रान तजे सुत रावन मारो ।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत, तबै गिरि द्रोन सु बीर उपारो ।।
आनि सजीवन हाथ दई तब, लछिमन के तुम प्रान उबारो ।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो ।।
रावन जुद्ध अजान कियो तब, नाग कि फाँस सबै सिर डारो ।
श्री रघुनाथ समेत सबै दल, मोह भयो यह संकट भारो ।।
आनि खगेस तबै हनुमान जु, बंधन काटि सुत्रास निवारो ।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो ।।
बंधु समेत जबै अहिरावन, लै रघुनाथ पताल सिधारो ।
देबिहिं पूजि भली बिधि सों बलि, देउ सबै मिलि मंत्र बिचारो ।।
जाय सहाय भयो तब ही, अहिरावन सैन्य समेत सँहारो ।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो ।।
काज किये बड देवन के तुम, बीर महाप्रभु देखि बिचारो ।
कौन सो संकट मोर गरीब को, जो तुमसों नहि जात है टारो ।।
बैगि हरौ हनुमान महाप्रभु, जो कछु संकट होय हमारो ।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो ।।
।। दोहा ।।
लाल देह लाली लसे ,अरु धरि लाल लँगूर ।
बज्र देह दानव दलन,जय जय जय कपि सूर ।।
।। इति संकटमोचन हनुमानाष्टक सम्पूर्ण ।।
कोई तन दुःखी, कोई मन दुःखी, कोई धन बिन रहत उदास ।
थोडे थोडे सब दुःखी, एक सुखी राम का दास ।।
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