संत और कसाई का तोता - Parrot of the Sage and Butcher (संगति का असर)

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एक राजा ने एक तोता पाल रखा था। एक दिन वह तोता मर गया। राजा ने मंत्री को कहा- "मंत्रीवर, हमारा तोते का पिंजरा सूना हो गया है। इसमें पालने के लिए एक तोता लाओ। अब, तोते सदैव तो मिलते नहीं। लेकिन राजा पीछे पड़ गये तो मंत्री एक संत के पास गये और कहा- "भगवन्, राजा साहब एक तोता लाने की जिद कर रहे हैं। आप अपना तोता दे दें तो बड़ी कृपा होगी।" संत ने कहा- "ठीक है, ले जाओ।"

राजा ने सोने के पिंजरे में बड़े स्नेह से तोते की सुख-सुविधा का प्रबन्ध किया। ब्रह्म मुहूर्त होते ही तोता बोलने लगता- "ओम् तत्सत्... ओम् तत्सत्... उठो राजा! उठो महारानी! दुर्लभ मानव-तन मिला है। यह सोने के लिए नहीं, भजन करने के लिए मिला है।"
चित्रकूट के घाट पर, भई संतन की भीर ।
तुलसीदास चंदन घिसै, तिलक देत रघुबीर ।।
कभी रामायण की चौपाई, तो कभी गीता के श्लोक तोते के मुँह से निकलते। पूरा राजपरिवार बड़े सवेरे उठकर उसकी बातें सुना करता था। राजा कहते थे कि सुग्गा क्या मिला, एक संत मिल गये। हर जीव की एक निश्चित आयु होती है। एक दिन वह सुग्गा मर गया। राजा, रानी, राजपरिवार और पूरे राष्ट्र ने हफ़्तों शोक मनाया। झण्डा झुका दिया गया। किसी प्रकार राजपरिवार ने शोक संवरण किया और राजकाज में लग गये।

एक दिन फिर राजा साहब ने कहा- "मंत्रीवर, खाली पिंजरा सूना-सूना लगता है, एक तोते की व्यवस्था हो जाती।" मंत्री ने इधर-उधर देखा, एक कसाई के यहाँ वैसा ही तोता एक पिंजरे में टँगा था। मंत्री ने कसाई से कहा कि इसे राजा साहब चाहते हैं। कसाई ने कहा कि आपके राज्य में ही तो हम रहते हैं। हम नहीं देंगे तब भी आप उठा ही ले जायेंगे। मंत्री ने कहा- "नहीं, हम तो प्रार्थना करेंगे।"

कसाई ने बताया कि किसी बहेलिये ने एक वृक्ष से दो सुग्गे पकड़े थे। एक को उसने महात्माजी को दे दिया था और दूसरा मैंने खरीद लिया था। राजा को चाहिये तो आप ले जाए। अब कसाईवाला तोता राजा के पिंजरे में पहुँच गया। राजपरिवार बहुत प्रसन्न हुआ। सबको लगा कि वही तोता जीवित होकर चला आया है। दोनों की नासिका, पंख, आकार, चितवन सब एक जैसे थे। लेकिन बड़े सवेरे तोता उसी प्रकार राजा को बुलाने लगा जैसे वह कसाई अपने नौकरों को उठाता था कि- "उठ! राजा बन बैठा है। मेरे लिए ला अण्डे, नहीं तो पड़ेंगे डण्डे!
राजा को इतना क्रोध आया कि उसने तोते को पिंजरे से निकाला और गर्दन मरोड़कर किले से बाहर फेंक दिया।"

दोनों तोते सगे भाई थे। एक की गर्दन मरोड़ दी गयी, तो दूसरे के लिए झण्डे झुक गये, भण्डारा किया गया, शोक मनाया गया। आखिर भूल कहाँ हो गयी? अन्तर था तो संगति का। सत्संग की कमी थी।

संगत ही गुण होत है, संगत ही गुण जाय ।
बाँस फाँस अरु मीसरी, एकै भाव बिकाय ।।




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