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राम से बड़ा राम का नाम क्यों ? - Why Ram Name is More Powerful Than God Ram

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राम दरबार में एक बार हनुमान जी महाराज श्री राम की सेवा में इतने तन्मय हो गए कि, गुरू वशिष्ठ के आने का उनको ध्यान ही नहीं रहा। सबने उठ कर उनका अभिवादन किया पर, हनुमान जी नहीं कर पाए। गुरू वशिष्ठ जी ने इस अपमान से क्रोधित हो कर राम से हनुमान के लिए मृत्युदंड माँगा, वो भी राम के अमोघ बाण से जो अचूक शस्त्र था। महाराज श्री राम ने कहा स्वीकार है। दरबार में राम ने घोषणा की कि कल संध्याकाल में सरयु नदी के तट पर हनुमान जी को मैं स्वयं अपने अमोघ बाण से मृत्यु दण्ड दूँगा। हनुमानजी के घर पहुँचने पर माता अंजनी ने हनुमान से उदासी का कारण पूछा तो हनुमान ने अनजाने में हुई अपनी गलती और अन्य सारा घटनाक्रम बताया। माता अंजनी को मालूम था कि समस्त ब्रम्हाण्ड में हनुमान को कोई मार नहीं सकता और राम के अमोघ बाण से भी कोई बच भी नहीं सकता। माता अंजनी ने कहा- "मैंने भगवान शंकर से, 'राम नाम' मंत्र प्राप्त किया था और तुम्हें यह नाम घुटी में पिलाया है। उस 'राम नाम' मंत्र के होते कोई तुम्हारा बाल भी बांका नहीं कर सकता। चाहे वे स्वयं राम ही क्यों ना हों। 'राम नाम' की शक्ति के ...

Shri Ramayan Ji Ki Aarti in English

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।।  Shri Ramayan Ji Ki Aarti  ।। Aarti shri ramayan ji ki Kirti kalit lalit siya pi ki Gavat brahmadik muni narad Valmiki bigyan bisarad Suk sanakadi sesh aru sarad Barani pavanasut kirti niki - 1 Gavat bed puran ashtadas Chhao sastra sab granthan ko ras Muni jan dhan santan ko sarabas Sar ans sammat sabahi ki - 2 Gavat santat sambhu bhavani Aru ghatasambhav muni bigyani Byas aadi kabibarj bakhani Kagabhusundi garud ke hi ki - 3 Kalimal harani bishay ras phiki Subhag singar mukti jubati ki Dalan rog bhav moori ami ki taat maat sab bidhi tulasi ki - 4 Bolo Siyavar Ramachandra Ki Jai Pawansut Hanuman Ki Jai

श्री रामायण जी की आरती - Shri Ramayan Ji Ki Aarti in Hindi

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।। श्री रामायण जी की आरती ।। आरती श्री रामायण जी की । कीरति कलित ललित सिय पी की ॥ गावत ब्रह्मादिक मुनि नारद । बाल्मीकि बिग्यान बिसारद ॥ सुक सनकादि सेष अरु सारद । बरनि पवनसुत कीरति नीकी ॥१॥ गावत बेद पुरान अष्टदस । छओ सास्त्र सब ग्रंथन को रस ॥ मुनि जन धन संतन को सरबस । सार अंस संमत सबही की ॥२॥ गावत संतत संभु भवानी। अरु घटसंभव मुनि बिग्यानी ॥ ब्यास आदि कबिबर्ज बखानी । कागभुसुंडि गरुड़ के ही की ॥३॥ कलिमल हरनि बिषय रस फीकी । सुभग सिंगार मुक्ति जुबती की ॥ दलन रोग भव मूरि अमी की । तात मात सब बिधि तुलसी की ॥४॥ बोलो सियावर रामचन्द्र की जय । पवनसुत हनुमान की जय ॥